सबके अपने-अपने राम
_लक्ष्मीकांत मुकुल
मेरे राम कि तेरे राम , सबके अपने-अपने हैं राम।
राम अवध में मिथिला में भी दिखे कभी मुनि आश्रम में
समय धार तीखी है होती ,घर से वन को निकले राम।
राम केवट के राम सिया के अहिल्या को हक दिलवाए
बूढ़ी शबरी के जूठे बेरों से, लोक संवाद बढ़ाये राम।
विश्व सुंदरी सम्राट अग्रजा शूर्पणखा का प्रणय निवेदन
परस्त्री संग केलि क्रीड़ा को, घातक कर्म बताये राम।
मित्रता क्या है कौन मित्र ,कैसे निभाएगा मित्र -संबंध
किष्किंधा का राज दिलाकर ,सुख -वर्षा करवाए राम।
प्यार की बातें खूब होती हैं, प्रेम के सच को जाने बगैर
प्रिया - न्याय हेतु सेतु बंधन ,लंका ध्वस्त कराये राम।
लोकतंत्र में भी रामराज का सपना पूरा हो सकता है
ताकत पूंजी के तबके को ,श्रम की राह दिखला दें राम
बाल्मीकि के राम और थे, तुलसीदास के राम प्रभु जी
कबीरा की बानी में था बसता ,आत्मबोध राम का नाम
भठयुग में भी राम मिलेंगे, हनुमान सा प्रिय बन जाओ
बनकर देखो सच्चे मानुष , सच का साथ निभाये राम
विविध समाजों के मिथक भरे हैं साहसिक गाथाओं से
मूसहर - डोम दावा करते हैं उनके दीना भदरी राम।
जब सत्ताएं रौंदी जन- गण को, या आया प्रकोप प्रलय
आकांक्षाएं ले कब तक बैठोगे, कि आएंगे- आएंगे राम