लाल चोंच वाले पंछी
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1.
पला गाँव की मिट्टी में, बोता खेतों में कविता
पैनी दृष्टि मुकुल की, शब्दों में कटार है
गाँव ,खेत खलिहान,धान ओसता किसान
देशज बिम्ब काव्य का, ध्वनित झंकार है
ग्रामीण व्यथा वेदना, शोषण-पीड़ा-दमन
बोधा वाला पीपल की, करुण पुकार है
लाल चोंच वाले पंछी, चेतना है मुक्तिगामी
प्रतीक मौलिक ताजा, भाषा धारदार है
2.
संकलित कविता में, सिमटी है समग्रता
ज्वलंत सरोकारों से, सार्थक संवाद है
खंडहरों में घर है, उदास नदी कोचानो
सूनी हैं पगडंडियाँ, फैला अवसाद है
रेत हुए खेत सभी, कौवे का है शोकगीत
धान का कटोरा आज, रुग्ण है, नाशाद है
लोक-रंग मुहावरा, गँवई जीवन-रस
बदले परिवेश का, सच्चा अनुवाद है
-हिमकर श्याम
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