Sunday, 3 November 2019

साहित्य अकादमी की पत्रिका "समकालीन भारतीय साहित्य'' में प्रकाशित लक्ष्मीकांत मुकुल की रचनाएं

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LAKSHMI KANT MUKUL لکشمیکاںت مُکُل लक्ष्मीकांत मुकुल said...


Description



कूछ कही कुछ अनकही: प्रकाशित हुई टिप्पणियां


…निहायत दिलचस्प शैली, प्रवहमान भाषा-परिवार से लेकर पूरे परिवेश तक से जुडे लोग और स्थितियां…यह किताब शुरु से अंत तक रहस्य/रोमांच/प्रेम/संघर्ष/राजनीती/ परिवार/प्रशासन/टकराव/उपलब्धि और फिर नियति के अनेकानेक खेलों से साक्षात्कार कराती है…
झुनझुनवाला जी रेवेन्यु डिपार्टमेंट के एक आला अफसर थे । छापे डालने के तनावपूर्ण क्षणों में ये लोग किस-किस तरह के खतरे उठाते हैं…धन की दुनिया से किस तरह के प्रलोभन और हथकंडे काम में लाए जाते है और उस चक्रव्यूह को भेदने में ये लोग क्या-क्या पापड बेलते हैं, यह शायद पहली बार इस किताब से जानने को मिलेगा । समसामयिक राजनीति और शासन तंत्र के अनुभवों पर सटीक टिप्पणियों के साथ-साथ इस पुस्तक से आपातकाल संबंधी कतिपय प्रचलित धारणाओं के बारे में एक नए पहलू से सोचने का मौका भी मिलेगा।
–कन्हैयालाल नंदन (नई दुनिया से)
इतनी आसान, इतनी सहज। ऐसा लगता है कि आप अपने गली-कूचे के बारे से बात कर रहे हैं । चाहे वह कानपुर हो या इलाहाबाद या बंबई, शीलाजी ने अपने समय का अत्यंत जीवंत चित्रण किया है और मुश्किल बातो को भी सरलता से, सहजता से और अपनत्व से कहा है । एक ईमानदार किताब जिसमें से हर क्षण ईमानदारी झलकती दिखाई देती है । -कमलेश्वर
‘कही-अनकही’ में बनावट कहीं नहीं है । सब कुछ सहज भाव से कहा गया है । कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है कि हम कोई उपन्यास पढ़ रहे है, रहस्य-रो,मांच से भरा उपन्यास और कही-कही अंतरंग, आत्मिक क्षणों को दिखाता हुआ गृहस्थ जीवन। एक क्षण को भी नहीं लगा कि यह वर्णन कृत्रिम है । -विष्णु प्रभाकर
रूढ़ियों को भेदकर स्वतन्त्रता की चिनगारियों के साथ-साथ परिवार में तालमेल बिठाने जैसी घटनाएं सार्थक संदेश देती हैँ। -डॉ. शेरजंग गर्ग
…बहुत कुछ होने के साथ-साथ बेहद इनसानी रिश्तों की झलक । -नासिरा शर्मा
‘कुछ कही कुछ अनकही’ एक मर्यादित प्रेम-प्रसंग के बाद जिंदगी की जद्दो-जहद से गुजरते हुए जहां पहुँचती है वहाँ आसपास के लोग भी उसका एक हिस्सा हो जाते हैं । विवरण रोचक, प्रवाहपूर्ण और तथ्यपरक हैँ। आत्मकथा होते हुए भी यह संयमित है, मर्यादित है और आत्म-श्लाया से परे है । -पदमा सचदेव
…रहस्य, रोमांच, तिलिस्म, रोमांस-सब एक जगह इकट्ठा कर दिया गया है। …मर्यादित जीवन के सिद्धांत को पकडे हुए अपने समय का जीवंत खाका ।
-वसंत साठे
…महानगरों में रहने वाले मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन के दिन-प्रतिदिन की ऊहापोह और जिजीविषा की खोज में आगे बढ़ते जाने की ललक जगह-जगह आभासित होती है। -डॉ. क्षमा गोस्वामी (वागर्थ से)
…सभी प्रणय-चित्रों में गरिमापूर्ण और सधी हुई मानसिकता के साथ एक सतत ठहराव है, छिछोरापन या आजकल जैसा उर्च्छाखाल प्रेम नहीं है-वह जो सीमाएं लांघकर बह जाता है । -डॉ. कुसुम अंसल (संचेतना में)
सुख-दु:ख, हर्ष-विषाद, राग-विराग सबसे मिलकर बना है जीवन और इसी में उसकी संपूर्णता है । तटस्थ भाव से जो इस संपूर्णता की अनुभूति करता है, वही एक सफल संस्मरण-लेखक भी होता है । इस बात का अहसास ‘कुछ कहीँ कुछ अनकही’ पढ़कर और अधिक हुआ ।…यह पुस्तक अपने समय को ईमानदारी से रेखांकित करती है ।
-राधेश्याम (दैनिक हिंदुस्तान में)

स्त्री-विमर्श का यह आत्मवृत्त अपने निजी, वैयक्तिक अनुभवों और अनुभूतियों से गुजरता हुआ सामाजिक- सार्वजनिक दृष्टि को मुकम्मल रूप में हमारे सामने परिभाषित करता है ।
-लक्ष्मीकांत मुकुल (समकालीन भारतीय साहित्य में)

पुस्तक ने भारतीय महिला पत्रकार की आंखों से देखे हुए एक बेहद रोचक कालखंड को जिया है । प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक यह रोचकता, रोमांच और कहीं-कहीं रूमानी वासंतीपन लिए हुए है। मार्मिक क्षण भी हैं ।
-पाञ्चजन्य
…कहानी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, पत्र, डायरी आदि अनेक चिताओं से साक्षात्कार कराती एक अत्यंत पठनीय पुस्तक ।
-रवीन्द्र कालिया

लक्ष्मीकांत मुकुल के दूसरे काव्य संग्रह "घिस रहा है धान का कटोरा" पर वरिष्ठ कवि विजय सिंह की समीक्षा

समकालीन हिंदी कविता के वरिष्ठ कवि और "सूत्र" पत्रिका के संपादक जगदलपुर निवासी श्री विजय सिंह जी ने मेरे कविता संकलन "घिस रहा ...