Thursday, 7 November 2019

लक्ष्मीकांत मुकुल की कविता __ "फिर लौटकर आएगा बुकानन"

फिर लौटकर आएगा बुकानन/ लक्ष्मीकांत मुकुल


फिर लौटकर आएगा बुकानन 
हाथी पर सवार (उन राहों से 
जिस पर आए थे कभी मेगास्थनीज , व्हेनसांग अलबरूनी, इब्नबतूता ,बर्नियर,
अपरिचित लग रहे इस 
रहस्यमय इलाके को देखने )
उसकी वृत्तांत में पुनः जीवंत 
हो जाएंगी शाहाबाद के गांव की गलियां

कोइलवर घाट पार करते हुए वह पाएगा कि सोन में कितनी कम बची है धार
 कई योजन तक फैले दावां का जंगल
 मदार के फाहों की तरह उड़ चुका है  कब का उंगलियों पर गिनने को बचे हैं वन्य जीव
 कैमूर पहाड़ी पर 
कुदरती संपदा की लूट में 
खून के छींटे से रंगे हैं तेंदू के पत्ते 
महुआ , ढेकुआर ,साल वृक्षों पर  
बिछी हैं लुटेरों की जलती आंखें 
 क्रेशरों , बारूद की धमाकों से लहूलुहान हो चुकी है पहाड़ी संतानों की जीवनचर्या

बुकानन उत्कण्ठित होगा यह जानने को 
कि जिले की सबसे बड़ी नदी काव को 
कैसे होना पड़ा ठोरा की सहायिका 
ठोरा के उद्गम, बहाव, मुहाने के जुड़े किस्सों में टटोलेगा
वह,पुराकाल के ग्रामीण -संघर्षों की महक मिलेगी उसे


चैनपुर की यात्रा में सुनेगा हरसू पांडे के किस्से 
बढ़ते भूमि लगान के विरुद्ध कैसे लड़ा था वह साहसी स्थानीय जमींदारों से युद्ध 
असमानता- अत्याचार -दुराचार के प्रतिरोध में विजेताओं द्वारा पराजितों के विषय में गढ़ी मनगढ़ंत कहानियों के तलछट को ढूंढेगा बुकानन

खेतों के आंगन में उगी जबरा- बभनी -सुनहर की पहाड़ियां अचरज से भर देंगी उसे 
महासागरों में द्वीपों की तरह मुंह उठाए खड़ी हुई
तिलमिलाएगा  वह उन्हें निरंतर ढूह में बदलते देखकर कहीं ये भी लुप्त न हो जाएं डालमिया, अमझोर उद्योगों की तरह




वह पुलकित होगा देखकर भीम बांध का गर्म सोता ऊंचाई से झड़ती असंख्य जलधाराएं 
वह चिंतित होगा कि "चुआड़" में  
सिमटता जा रहा है रिसता पानी
 थके -हारे वनचरों के प्राण हैं संकट में 
बारिश के बिना तेज तपन से झुलस चुकी हैं फसलें
 दर- बदर भटक रहे हैं हरिलों के प्यासे झुण्ड



सूर्यपुरा से भलुनी आते हुए उसे नहीं मिलेगा आज दो मील तक पसरा जंगल 
बडहरी से बहुआरा के बीच अब 
उसे नहीं दिखेगा लंबे घासों से ढंका मार्ग 
धमाचौकड़ी करते बारह सींघों के झुंड 
जगदीशपुर के परास वन में अब कहीं नजर नहीं आएगा गरुड़ के आकार का जीमाच पंछी ,जो लड़ता था उड़ते हुए बाजों से
 कोआथ से कोचस के मार्ग में गायब मिलेगी उसे दिनारा के समीप कलकल बहती 
धर्मावती की तीक्ष्ण धार 
एक नदी के भूगोल से लुप्त
 हो जाने पर खीझेगा बुकानन 



देहात की रास्तों,आहरों, सार्वजनिक संपत्तियों का अतिक्रमण करने वाले लोग ही अब उसे अक्सर मिल जाएंगे बिहार के गांवों में 
वह अचरज से भर जाएगा यह पाते हुए कि अंग्रेजों से भी लूटने में कितने माहिर हैं यहां के मुखिया _सरपंच_ अफसर_ मंत्री 
आजाद भारत के इस नए दस्तूर को बड़ी बारीकी से नोट करेगा बुकानन




खीझते , बढ़बढ़ाते बूढ़े
 दारू -भठ्ठियों को जोहते युवक
 आइस -पाइस खेलते बेफिक्रे बच्चे 
स्त्री- हिंसा के भय के बावजूद 
अर्घ्य का प्रसाद बांटती औरतें 
खिलखिला कर हंसती,गुनगुनाती,
 फिर सहम जाती लड़कियां 
पोखरे के कमल - डंठलों को
 रौंदती भैंसे सबको निहारेगा 
अंग्रेज यात्री फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन
 और दर्ज करेगा बहुत सावधानी से 
अपनी डायरी में यह समय।


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