_लक्ष्मीकांत मुकुल
वह कोई कबंध नहीं
या, पशुओं में फैलता खुरहा, मुंहपका रोग
न तो वह डाल पर का झूलता कोई बेताल
यह है शैतानी दिमाग द्वारा तैयार इंद्रजाल
हरकतें करता उस लकड़हारे की तरह
वृक्ष पर बैठने की टहनी पर
चला रहा था जो दनादन कुल्हाड़ी
गहरी साजिशों की तरह वे शैतान
उत्पन्न कर रहे हैं मनुष्यता के विरुद्ध जैविक हथियार जिनके पास गुण नहीं होते
बांझ पपीते में उगाने को फल
जिनके जनमाए रोबोट नहीं बना सकते
मधुमक्खियों जैसे शहद - बूंद
उनके बनाए हाइड्रोजन बमों से बंजर हो गई मरुभूमि पर नहीं बरसाई जा सकती झमाझम बारिश
जिससे गदरा कर उभर आती गर्भवती स्त्री
सदृश इस धरती की काया
दूर अंतरिक्ष से घूम कर आते उल्का पिंडों से
कहीं ज्यादा खतरनाक हैं शैतान वैज्ञानिकों के दिमाग पूंजीवादी दवा कंपनियों ,मनुष्य विरोधी ताकतों के साथ मिलकर वे बना रहे हैं समयबद्ध योजनाएं
कभी प्लेग, एड्स, वर्ल्डफ्लू ,कोरोना महापिचास
जैसी फैलाने के लिए महामारियां
वायुमंडल में फैला देने को जहरीले विषाणु
जलीय जीवन में विषाक्त कचड़े
स्थलों पर जीवन को तबाह कर देने के षड्यंत्र
यह महापिचास पांव फैला रहा है वैसा ही
जैसे दशक भर पूर्व दलदल में धंस कर
मरे पशु की सड़न से विषाक्त
हो चुकी थी बरसाती नदी
जिसके पानी पीकर तड़प-तड़प कर
मरने लगी थीं मेरे गांव की दुधारू भैंसें
कोरोना जैसे दानव - दूतों के आगमन से रोकी
जा रही हैं मिलने -जुलने की तमाम संभावनाएं
स्वजनों को छूने- चूमने पर लग गया है कर्फ्यू
मुंह में जाब लगाने को किया जा रहा है विवश
उन शैतानों के हौसले में नहीं शामिल
जो रेत होती नदियों को लौटा दे छल - छल धार आकाश में तैरते हुए उजले बादलों में पानी
खोंखड़ होते जा रहे जंगलों में वृक्ष - लताएं
ढूह जा रहे पर्वतों को गुंजार करते झरने
उनके हाथ पीड़ितों के आंसू पूछने के लिए नहीं बने
वे बने हैं आपकी जेब में छिपे
पसीने की कमाई को झटकने के लिए
अपनी झमाझम करती थैलियों में !
लक्ष्मीकांत मुकुल के कोरोना पर हाइकु
पांव पसारा
कोरोना का पिचास
बंद जिंदगी !
लगा है जाब
सूंघने चूमने पे
उदास भौरें
रूठी हो तुम
कोरोना के भय से
छू न सका हूं
थर्रा उठी है
मनुष्यता,विषाक्त
जैविक -अस्त्र
रुका स्नान
खड़ा नदी मार्ग में
प्रेत - कोरोना
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