चौमासा
घिर रहे होंगे जब आकाश में बादल
देव जा रहे होंगे शेष शैया पर शयन को
बरसेगी मानसून की पहली बारिश
तड़पेगा कालिदास का यक्ष
प्रियतमा के वियोग में उदास अकेला
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी से
शुरू होगी हमारी कृषि यात्रा
हल प्रवहण, वीजोप्ति, पौध – रोपण
जैसे चले जाते हैं भूख मिटाने को
क्षितिज तक बकुल – झुंड
आती रहेंगी दक्ष राजा की भुवन मोहिनी पुत्रियाँ
कभी दूज , चौथ , पूनों सा अनुराग लिए
मृगशिरा के गमन करते ही आर्द्रा लाएगी पियूष वर्षी
मेघों के समूह / सारी धरती हो जाएगी जल - थल
पुनर्वसु आएगी हरी साड़ियों में लिपटी हुई
बारिश से बचने मत जाना तुम महुआ - कहुआ पेड़ों के पास
सघन बूंदों के बीच गिरती बिजलियाँ दबोचेंगी तुम्हें
खड़ा न होना बड़हल , जामुन के तनों के पास
अरराकर टूटेगी डालियाँ / बरखा मुड़ – मुड़कर भिंगों देंगी तुम्हें
पुत्र शोक में रोयेगी पुष्य वह मड्जरनी
रिमझिम फुहारों से तृप्त हो जायेगी धरती की कोख
बिलबिलाकर अंकुरित हो जायेंगे बरसों के सोये बीज
अश्लेशा , मघ्घा नक्षत्रों की बेवफाइयों को याद करेगा
मुनेसर मेड़ों पर घास गढ़ता हुआ -- सन् 66 का अकाल
आएगी फाल्गुनियां पूर्वी हवाओं के साथ मदमाती
उत्तरा उतरेगी भूमि पर खारा बूंदों के साथ
जलाती हुई हमारे अभिलाषा के पसरे लत्तरों को
हहराती – घहराती पवन वेगों - सी आएगी हस्त
लोहा, ताम्बा, चांदी, सोना, पावों वाले हाथी पर सवार
बढ़ जायेगा नदी का वेग / जुडा जायेंगे खेत
चित्रा व स्वाती की राह देखेंगे किसान
निहारते धान की बालियाँ
जब पक रही होंगी उसकी फसलें
गुलामी से मुक्त हो रहा होगा तब कालिदास का यक्ष
कार्तिक शुक्ल पक्ष हरिबोधिनी एकादशी को
चिरनिद्रा से जागेंगे देव , कठिन दिनों में सबका साथ छोड़ सोने वाले
जैसे बालकथा ‘मित्रबोध’ में खतरा का संकेत होते ही
एक – एक कर टूट जाती है मित्रता की अटूट डोर
तब चतुर्मास के दुखों का पराभव हो चूका होगा
कृषक मना रहे होंगे फसल कटने के त्यौहार
उम्मीदों के असंख्य पंखों पर होकर सवार .
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