बारहमासा
सावन भादों के रिमझिम फुहारों के बीच
कुदाल लेकर जाऊँगा खेत पर
तुम आओगी कलेवा के साथ
चमकती बिजली , गरजते बादलों के बीच
तुम गाओगी रोपनी के अविरल गीत
बिचड़े डालते मोर सरीखे थिरकेगा मन
खडरिच – सा फुदकेंगे कुआर – कार्तिक में
कास के उजले फूलों के बिच
सोता की धार - सी रिसती रहेगी तुम
गम्हार वृक्ष – सा जडें सींचता रहूँगा कगार पर
धान काटते , खलिहान में ओसाते
अगहन – पूस के दिनों में बहेगी ठंढी बयार
तुम सुलगाओगी अंगीठी भर आग
चाहत की तपन से खिल उठेगा मेरी देह का रोंवा
माघ – फागुन के झड़ते पत्तों के बीच
तुम दिखोगी तीसी के फूल जैसी
छाएगी आम के बौराए मंज़र की महक
तुमसे मिलने को छान मारूंगा
चना – मटर – अरहर से भरी बधार
चैत्र – बैसाख में चलेगी पूर्वी – पश्चिमी हवाएं
गेहूं काटने जायेंगे हम सीवान में
लहराओगी रंग – बिरंगी साड़ी का आँचल
बोझा उठाये उडता रहूँगा
सपनों की मादक उड़ान में
तेज़ चलती लू में बाज़ार से लौटते हुए
जेठ – आसाढ़ के समय
सुस्तायेंगे पीपल की घनी छाँव में
पुरखे तपन में ठंढक देते हैं वृक्षों का रूप धर
हम बांटेंगे यादें अपने बचपन की
तुम कहोगी हिरनी – बिरनी के साहसिक किस्से
खडखडाउंगा कष्टप्रद दिनों से जूझने की
शिरीषं फलियों की अपनी खंजड़ी .
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