Friday 28 October 2022

लक्ष्मीकांत मुकुल द्वारा लिखित "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" इतिहास- पुस्तक पर डॉ. भवनाथ झा, डॉ. श्यामसुंदर तिवारी, कुमार शंभूशरण, विपिन कुमार,अर्चना श्रीवास्तव, अनुराग, राणा अवधूत व पंकज कुमार कमल की टिप्पणियां




इतिहास-लेखन का दिशा-निर्देश

क्षेत्रीय इतिहास वास्तव में इतिहास लेखन के स्रोत होते हैं । इतिहास में क्षेत्र जितना छोटा होता जाता है, स्रोत की प्रामाणिकता में गहनता आती जाती है और वह बृहत्तर क्षेत्र के इतिहास लेखन के लिए उतना ही प्रामाणिक स्रोत बनाता जाता है। लक्ष्मीकान्त मुकुल की यह कृति भी इस सन्दर्भ में ऐसी ही पुस्तक है। लेखक ने शाहाबाद गजेटियर, फ्रांसिस बुकानन का सर्वे रिपोर्ट एवं डायरी, विलेज नोटस के दस्तावेज, डा. डी. आर. पाटिल, के. के. दत्त, कैडस्टल सर्वे सेटलमेंट रिपोर्ट आदि स्रोतों के आधार पर पुराने शाहाबाद जिला के क्षेत्रीय
ऐतिहासिक सामग्री को एकत्र करने का कार्य किया है। ये सभी सामग्रियाँ इंग्लिश में हैं, जिन्हें हिन्दी में प्रस्तुत कर लेखक ने हिन्दी भाषियों के लिए प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध करायी है। इस पुस्तक में कई तथ्यों के लिए लेखक ने बुजुर्गों से भेंट वार्ता कर उनसे उपलब्ध सामग्री का भी समायोजन किया है, जो सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी। बीच-बीच में उन्होंने पूर्ववर्ती कवियों के द्वारा लिखी गयी सामग्री को भी ऐतिहासिक दृष्टि से समायोजित किया है, जो क्षेत्रीय इतिहास लेखन की दिशा में नये सन्दर्भ हैं। साथ ही, स्थानीय स्तर पर
प्रचलित मुहावरों, लोकगाथाओं तथा गाँवों के नाम का विवेचन कर उन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से विवेचित कर क्षेत्रीय इतिहास को उजागर करना का प्रयास इस पुस्तक की अनन्य विशेषता है।
लेखक ने ऐतिहासिक महत्त्व के पुरावशेषों के नष्ट किये जाने पर जो चिन्ता व्यक्त की है और उसके संरक्षण के लिए जागरूकता लाने का जा प्रयास किया है, वह इस पुस्तक का सबसे उपयोगी पक्ष है। लेखक स्वाभाविक रूप से इस बात को लेकर चिंतित हैं कि पिछले 50 वर्षों से विकास के साथ-साथ पुरावशेष नष्ट होते जा रहे हैं। वे इतिहास के राजनीतिकरण पर भी अपनी चिन्ता व्यक्त करते हैं। वास्तविकता है कि 1857 के बाद से ही इतिहास लेखन का राजनीतिकरण हो चुका है। अतः अनेक प्रकार की भ्रान्तियाँ आज भी फैल रही हैं। कामना है कि लेखक की निम्नलिखित पंक्तियाँ वर्तमान इतिहास लेखन की दिशा निर्धारित करने में सहायक सिद्ध होंगी _
“परन्तु हाल के कुछ वर्षों में माहौल बदला वर्चस्ववादी ताकतें एक नये अवतार में इतिहास की पुर्नव्याख्याएँ करने लगी हैं। ICHR यानी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् एवं ऐतिहासिकता के तथ्यों का भगवाकरण करनेको आतुर शक्तियों की साम्प्रदायिक परिकल्पनाएँ, स्मृतियों की राजनीति, दलित पहचान का हिन्दुत्व अर्थ, लोक मिथकों-वृत्तांतों का साम्प्रदायीकरण करके और सांस्कृतिक स्रोतों का राजनीति करके नया ‘बिम्ब’ जो गढ़ा जा रहा है, वह अत्यंत घातक है। स्थानीय संस्कृतियों और लोक विश्वासों को आधार बनाकर इतिहास की पुर्नव्याख्या करके बहुलतावाद के विरुद्ध एकीकृत हिन्दू महावृत्तान्त के रूप में प्रस्तुत करने का उनका प्रयास प्रगतिशील इतिहास बोध की समझ के विरुद्ध होगा। जिससे पुरजोर निपटना इतिहासकारों के लिए आवश्यक है।”
अशेष शुभकामनाओं के साथ!
_ भवनाथ झा
सम्पादक, 'धर्मायण'
महावीर मन्दिर, पटना

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कुछ समय पहले तक बड़े राज्यों, राजाओं, केंद्रीय और बड़ी क्षेत्रीय शक्तियों पर आधारित इतिहास लेखन प्रचलन में था। किंतु आज क्षेत्रीय इतिहास लेखन पर जोर है। वस्तुत: अपनी माटी, अपने गांव और आसपास का अब तक अछूता इतिहास जो केवल किंवदंतियों और लोकगीतों में ही शेष है, उसे समय के साथ विस्मृत होने का डर है। अतः क्षेत्रीय इतिहास लेखन की जरूरत भी है। ऐसे समय में कवि हृदय लेखक लक्ष्मीकान्त मुकुल की पुस्तक क्षेत्रीय इतिहास के नए संदर्भ के लिए प्रासंगिक है। इस पुस्तक में लक्ष्मीकांत जी ने अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि का इतिहास लेखन आधुनिक प्रविधियों और यथोचित संदर्भों के साथ किया है। साहित्यिक संदर्भ इतिहास के प्रमाण होते हैं। इस प्रकार साहित्यकार भी किंचित ही सही एक इतिहासकार भी होता है। यहां तो शाहाबाद के विभिन्न गांवों और कस्बों के इतिहास को उजागर करने के लिए एक साहित्यकार की यात्राएं और विविध वर्गों के लोगों का साक्षात्कार लक्ष्मीकांत मुकुल को मंजे हुए इतिहासकार की श्रेणी में ला खड़ा करता है। पुरातात्त्विक प्रमाणों, पौराणिक और साहित्यिक संदर्भों, पूर्व के यात्रा वृत्तांतों एवं छिट पुट बिखरे हुए इतिहास का वर्तमान किंवदंतियों के साथ संबंधों की पड़ताल गहन शोध का विषय है, जो लक्ष्मीकांत जी की इस पुस्तक में स्पष्ट परिलक्षित होता है। यह पुस्तक क्षेत्रीय इतिहास लेखन को वास्तव में नए संदर्भ प्रदान करती है। यह अपनी श्रेणी में पथ प्रदर्शक का कार्य करेगी, ऐसा हमारा मानना है। लक्ष्मीकांत मुकुल को हार्दिक शुभकामनाएं।

_ डॉ श्याम सुंदर तिवारी, इतिहासकार, आकाशवाणी सासाराम।

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 "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" यह शीर्षक है हाल में ही प्रकाशित लक्ष्मीकांत मुकुल की पुस्तक का.इतिहास लेखन का कार्य सरल नहीं होता, वह भी ग्रामीण इतिहास का. इसके लिए गहन अध्ययन, कठोर परिश्रम, व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. ग्रामीण इतिहास केवल सन्दर्भ ग्रंथों के आधार पर नहीं लिखे जा सकते, बल्कि इसके लिए गाँव के उन लोगों से मिलना होता है, जिनके पास पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पुरखों पुरनियों से सुनी कहानियां और लोकक्तियाँ होती हैं इन कथाओं को इतिहास मेंघटित घटनाओं से जोड़कर देखना होता है
और उस पर विचार कर उसकी ऐतिहासिकता को रेखांकित करना होता है. लक्ष्मीकांत जी इसमें सफल होते दिखाई देते हैं.
यह पुस्तक शब्दों में गुंथी  , भाषाओं में चित्रित गौरवशाली इतिहास और हमारे पूर्वजों की समृद्ध विरासत के उन स्थलों और घटनाओं का चिताकार्षक झरोखा है, जिसका कण- कण शाहाबाद की महिमा गाथा का वर्णन करते हैं.चाहे वह औपनिवेशिक काल में 1785 ईस्वी में दिनारा के चौधरी धवल सिंह का विद्रोह हो या 1857 के महानायक कुंवर सिंह का.उज्जैनियों और चेरो के बीच छिटपुट लड़ाइयाँ और अंततः तुराव गढ़ के नेस्तानाबूद होने के बाद उज्जैनियो का राज इस क्षेत्र में स्थापित होने की बात
हो.कोआथ के बिलग्रामों की समृद्ध विरासत और इस क्षेत्र की खुशहाली में नदियों के योगदान की भी कथा यह पुस्तक कहती है.
इस पुस्तक में यात्रियों के वर्णनों के अलावा रॉयल बंगाल एटलस, जिला गजेटियर, रियासतों के कागजातों, लोगों के, पुरखों पुरनियों से सुनी कहानियों के आधार पर इस क्षेत्र के इतिहास को रेखांकित करने की कोशिश की गई है।
शाहाबाद के इतिहास को जानने के लिए पठनीय होने के साथ साथ यह पुस्तक संग्रहणीय भी है.

_ कुमार शंभु शरण, इतिहास अध्येता व अध्यापक, डेढ़गांव,रोहतास।

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 कवि मित्र लक्ष्मीकांत मुकुल आज मेरे धनसोई निवास पर पधार कर अपनी नई पुस्तक "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" पुस्तक भेंट किये। उक्त पुस्तक को सरसरी निगाहों से देख कर यहीं लगा कि शाहाबाद के ग्रामीण समाज और इतिहास को समझने में यह मददगार साबित होगी। उक्त पुस्तक को छह भागो में बांटा गया है_ औपनिवेशिक काल में दिनारा क्षेत्र और उसकी प्रतिरोधी चेतना, यात्रियों के नज़रिए में शाहाबाद, शिया मुस्लिम द्वारा प्रारम्भ सिमरी का महावीरी झण्डा, बक्सर में  गंगा :अतीत से वर्तमान तक, ग्रामीण इतिहास की समझ, शाहाबाद गजेटियर का महत्व। उक्त सभी अनुक्रम मे शामिल विषय वस्तुओं को देखने से यही लगा कि लक्ष्मीकांत मुकुल ने एक कवि होने के बावजूद शाहाबाद के इतिहास को अपने यात्री मन से उक्त पुस्तक में जिन- जिन बिन्दुओं को सूचीबद्ध किया है, उससे हमें शाहाबाद के ऐतिहासिक गाँवों, नदियों और जनमानस की कथाओं को क़रीब से समझने में मदद मिलेगी। उक्त पुस्तक में विभिन्न इतिहासकारों की यात्राओं, लोक कथाओं की चर्चा,गांव का बहुआयामी रूप आदि की बातें इतिहास के क्षेत्र में एक नये प्रयोग को दर्शाती है। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए कवि मित्र लक्ष्मीकांत मुकुल जी को ढेर सारी हरित शुभकामनाएं! 

                        _विपिन कुमार (शिक्षक) संयोजक आसा पर्यावरण सुरक्षा, बिहार - सह- ब्रांड एम्बेसडर स्वच्छ सर्वेक्षण २०२३ नगर परिषद्, बक्सर।

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07.05.2023,दिनारा,रोहतास,बिहार.....

दिनारा के वांग्मय परिषद के सभागार में एक संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमें युवा इतिहासकार लक्ष्मीकांत मुकुल की हाल में प्रकाशित पुस्तक "यात्रियों के नजरिए में शाहबाद" का लोकार्पण परिषद के अध्यक्ष लक्ष्मण चौबे, कॉमरेड गोपाल राम, सत्यनारायण साह एवं कमला प्रसाद सिंह, शिक्षक के हाथों संपन्न हुआ ।इस पुस्तक में वर्णित दिनारा क्षेत्र के ग्रामीण एवं लोक इतिहास से संबद्ध विषयों पर व्यापक चर्चा भी हुई। अंग्रेजों के समय का दिनारा, यहां के निवासियों की प्रतिरोधी चेतना एवं दिनारा परगना से प्रखंड कार्यालय बनने तक की कहानियों पर इस पुस्तक के माध्यम से विमर्श किया गया। उपस्थित कवियों ने अपना मनोरम काव्य पाठ भी प्रस्तुत किया। इस अवसर पर शालिग्राम पांडेय, जग नारायण साह, सूरज पांडेय, इतिहास लेखक लक्ष्मीकांत मुकुल, श्रीकृष्ण दुबे, काशीनाथ सिंह, सीताराम साह, श्रीनिवास दुबे, गौरी शंकर पासवान, बृजेश कुमार (कवि), अमीरचंद सिंह रामजी सिंह (शिक्षक), बृजेंद्र दुबे एवं तारकेश्वर सिंह आदि विद्वान भी प्रमुखता से उपस्थित थे। दिनारा के ग्रामीण इतिहास की खोज के संबंध में इतिहासकार लक्ष्मीकांत मुकुल ने बताया कि इस कार्य को करने की प्रेरणा मुझे दिनारा के कवि स्वर्गीय कमलनयन दुबे से प्राप्त हुई थी। इस अवसर पर कमलनयन दुबे की याद में एक स्मृति ग्रंथ प्रकाशित वांग्मय परिषद द्वारा निर्णय लिया गया।
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27.2.2023,प्राथमिक विद्यालय, मैरा...

बिहार विधान सभा के दिनारा क्षेत्र के विधायक माo विजय कुमार मंडल एवम बिहार विधान परिषद सदस्य माo अशोक कुमार पांडेय द्वारा "यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद" का लोकार्पण_
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13.05.2023.....
बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य सम्मेलन के अवसर पर ए. एन. सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, गांधी मैदान, पटना के सभागार में पिछले दिनों मेरी ग्रामीण इतिहास की पुस्तक "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" का लोकार्पण महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की पूर्व कुलपति श्री विभूति नारायण राय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकार, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव श्री सुखदेव सिंह सिरसा, प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडल के सदस्य कॉमरेड राजेंद्र राजन, बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष व समाज वैज्ञानिक डॉ. ब्रज कुमार पांडेय, अजीज प्रेमजी फाउंडेशन, जयपुर के रिसोर्स पर्सन इतिहासकार डॉ, दीपक कुमार राय के  हाथों संपन्न हुआ।
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05.02.2023
डेढ़गांव यात्रा में _ यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद

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यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद

वास्तव में इतिहास को विभिन्न परम्पराओं मान्यताओं और महिमा कहानियों और किसी भी देश या जाति के संघर्षो का सामूहिक खाता कहा जाता है।

किसी भी क्षेत्र, धर्म, भौगौलिक अवस्था पर इतिहास लिखने का कार्य आसान नहीं है उसे लिखने के लिए व्यापक संकल्प की आवश्यकता होती है। 
लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल ने ऐतिहासिक घटनाओं को आधुनिक रूप से लिखने के लिए गहन प्रयास और अध्ययन किया है जो सराहनीय है। इनकी कविताएं और आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।
'लाल चोंच वाले पक्षी', 'घिस रहा है धान का कटोरा' 'कविता संग्रह' प्रकाशित हो चुकी है। इसी कड़ी में उनकी पुस्तक 'यात्रियों की नजर में शाहाबाद' पढ़ने को मिला । जिसमें यात्री 'जेम्स रेनेल' 'बुकानन की रिपोर्ट' और स्थानिय वृद्धों के कथनों के माध्यम से अपनी यात्राओं से ज्ञान अर्जित कर इस पुस्तक को हम तक पहुचाया जिसे 'सृजनलोक' प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है-- इस पुस्तक में छः आलेख संकलित है जिसे पढ़ कर हम क्षेत्रीय इतिहास की समझ को विकसित कर सकते हैं-

1-औपनिवेशिक काल में दिनारा क्षेत्र और उसकी प्रतिरोधी मेजर जेम्स रेनेल द्वारा सन् 1773 में तैयार किये गये रॉयल बंगाल एटलस में दर्शाये गये स्थितियों के आधार पर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक रेखांकन किया जा सकता है। इस नक्शे में काव नदी के तत्कालिन बहाव मार्ग को भी सही तरीके से दिखाया गया है ।

शाहाबाद के मध्य में बसा दिनारा मुगलकाल में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। दिनारा क्षेत्र की जमींदारी 1786-97 में कोआथ के नबाब को मिली थी । औपनिवेशिक काल में नदियों की जलोढ़ मिट्टी से बना यह क्षेत्र भरकी कहा जाता है ।

2-यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद यात्री कार्य या ज्ञान की तलाश में जब दूर की यात्रा करते हैं तब अपने समक्ष एक ऐसी दुनिया पाते हैं जो खुद के भौतिक और सांस्कृतिक परिवेश से भिन्न होती है शाहाबाद क्षेत्र में जिस प्रथम यात्री का विवरण प्राप्त होता है, वह सातवीं शती में आया चीनी यात्री हृवेन सांग था । मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर अपनी विजय यात्रा में 1529 ई. में शाहाबाद के उत्तरी भाग से गुजरा था ।

3- शिया मुस्लिम द्वारा प्रारंभ सिमरी का महावीरी झंडा - सामाजिक और धार्मिक समरसता का एक अद्भुत उदाहरण गांव सिमरी में मिलता है, जहां दशहरे में महावीरी झंडा उठाने की प्रथा एक शिया मुस्लिम द्वारा सौ वर्ष पूर्व आरम्भ की गयी जो आज भी बदस्तूर जारी है। सिमरी में बसा शिया मुस्लिम परिवार कोआथ के नवाब परिवार की एक शाखा माना जाता है ।

4- बक्सर में गंगा : अतीत से वर्तमान तक- पौराणिक मिथको के अनुसार बक्सर के गंगा तट पर ही विष्णु का वामन अवतार हुआ था और त्रेता युग में विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण अयोध्या से लाये गये थे । गंगा घाटी की खोज सरकार द्वारा 1926 ई. में आशुतोष बनर्जी शास्त्री के निर्देशन में बक्सर टीला के खुदाई से हुई ।
 
5- ग्रामीण इतिहास की समझ - मेरा गांव मेरा इतिहास की समझ पीढ़ी इंसानी रिश्तों सहाकार के सम्बन्ध को समझने-सीखने का सार्थक प्रयास है

6- शाहाबाद गजेटियर का महत्व - यह सोलह अध्याय में विभक्त है। इतिहास, कृषि, सिंचाई, उद्योग, बैंकिग व्यपार, वाणिज्य, यातायात, आर्थिक संबंध, प्रशासन, न्याय, भू-राजस्व, शिक्षा-संस्कृति, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाएं, और प्रसिद्ध स्थल, जैसे विषय पर शामिल है। शाहाबाद जिला 1765में बना । मध्यकालीन भक्त कवि तुलसीदास रघुनाथपुर के निवासी थे, डिहरी में सोन पार करने के लिए नावों पर बासो की चचरी बनती थी, जिसमें 14,000 बांस लगते थे, जिले की पुरानी देशी माप-तौल प्रणाली अब से कुछ भिन्न थी।

पुस्तक का शीर्षक पाठक को गहरी अर्न्तदृष्टि प्रदान करती है । इसमें 1773 से 1962 के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को परिभाषित किया गया 1 पुस्तक में घटना व्यापक समय और कालानुक्रमिक रूप से आगे बढ़ती है। 1773 में जेम्स रेनेल का एटलस, 1786-97 को आथ की जमींदारी, 1793 लार्ड कार्नवालिस के समय में शाहाबाद की जमींदारी, सुदुर गांवो के संसाधन की खोज, जिसका नेतृत्व बुकानन ने सन् 1812-13 में पूरा किया। धरकंधा का दरियामा ज्ञानमार्गी संत दरियादास आधार भूमि है सन् 1674-1780 में जिसका पादुर्भाव हुआ, सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन बंगाल टेनेंसी एक्ट 1884 में लागू कास्तकार की जमीन का फैसला, दो सौ दस वर्ष पहले का सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक आर्थिक स्थितियों को अवगत कराता यह पुस्तक, उस समय के कठिन और संक्रमणशील सामाजिक स्थिति को दर्शाता है ।

इतने वर्षों बाद भी गांव की हालात बहुत बेहतर नही हुआ है। कुछ गांव तो आज भी गुमनामी के अंधेरे में है जहां आजादी से पूर्व और आजादी के समय अपने देश पर सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार थे।

इस पुस्तक के माध्यम से आप हर उस जगह के बारे में जान सकते हैं। जहां की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और संतो की ज्ञान को समेटे हुये है 1 इस पुस्तक के बारे में इतना ही कहूंगी, यह ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हुये भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । जिसे पढ़ने के बाद विराम की इच्छा नही होगी, अविलम्ब पूर्ण करने की इच्छा जागृत होगी। भाषा सहज और सरस होने से इतिहास समझने में कोई कठिनाई नही होगी।

लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल जी को बधाई और शुभकामनाएं, आप निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर रहे ।

अर्चना श्रीवास्तव
दिल्ली-110096

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क़ाज़ी बंगला,दिनारा में दिनारा के इतिहास पर विमर्श
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10.08.2023
सिन्हा लाइब्रेरी, पटना में अपनी किताब "यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद" को उप पुस्तकालयाध्यक्ष श्री अंजय कुमार को पुस्तकालय में सूचीबद्ध करने के लिए भेंट प्रदान करते हुए_
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خدا بخش اورینٹل پبلک لائبریری، پٹنہ میں لائبریری میں کیٹلاگنگ کے لیے ڈپٹی لائبریرین ڈاکٹر سید مسعود حسن کو اپنی کتاب "یاروں کے نظریے میں شاہ آباد" پیش کرتے ہوئے
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My father Mr. Lakshmi kant Mukul's book focusing on rural history "Yatriyon Ke Nazariye main Shahabad" helps to understand the past development current of the local folk society.  Till now we have been doing the work of studying the history of the country, description of the kings and the activities of their reign in history courses.  But, we were not yet introduced to the understanding of the history of the particular people and region.  This book is an initiative in this direction.

The academic institutions and university teachers of our state have been denying the concept of rural history and the importance of its understanding till now.  This book is proving that every village has its own existence, its own sense of memory and its people have their own unique historical understanding.  The first article of this book is based on the Dinara region and its resistance consciousness during the colonial period, while the second chapter is an analysis of the travelogues of domestic and foreign travelers who visited the old Shahabad district.  A detailed description has also been given on the usefulness of the District Gazetteer in the present times and the cultural and social importance of the river Ganges in Buxar has also been well discussed.

An article in this book "Understanding of Rural History" is very important.  What is rural history... Why is it necessary to read and know it?  It throws light on these deep points.  Urbanization, industrialization and migration culture have almost destroyed the form of the village, its memory value and its importance.  The ruling class of the Presidency towns and its contractors are deciding the course of the villages.  Degradation of agricultural culture, continuously decreasing agricultural systems and cultural values ​​associated with them, folk festivals, simplicities of rural life etc. are disappearing.  In these difficult times, this historian believes that understanding of my village, my history is a worthwhile effort to understand and learn the relation of cooperation from generation to generation.  The author also says that in the form of rural history, the voice of resistance is devoid of its ambiguous meaning, ambiguity, sometimes ambiguity, popular talks and experiences in routine, which is considered a part of the culture of the weak and the culture of the silent.

The rural historian is also a farmer poet, two of his poetry collections have also been published.  He has expressed the sentiments related to rural history in both prose and poetry.

I believe that this book will work to develop the readers' thinking towards a new phase of history.

© Anurag

लक्ष्मीकांत मुकुल जी द्वारा लिखित "यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद" बहुत ही ज्ञानवर्धक किताब है।इस किताब के पढ़ने से शाहाबाद जिले के प्राचीन गांव के भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों की जानकारी मिलती है। इस किताब के माध्यम से शोधार्थी छात्रों के लिए काफी लाभ मिलेगा जो भारतीय गांव परंपरा के बारे में जानकारी चाहते हैं। इस किताब में हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर एवं हमारे मिट्टी पर होने वाली फसलों एवं जमींदारी प्रथा में सामाजिक गतिविधियों की जानकारी बहुत ही अच्छे तरीके से जानकारी दी गयी है। आने वाले भविष्य में यह किताब एक मार्गदर्शन का काम करेगी।आपके इस किताब को पढ़कर मुझे भी कुछ गांव के पुरातात्विक महत्व उसके विषय वस्तुओं पर प्रकाश डालने का उत्कंठा जाग उठी है। नदी का उद्गम स्थल, नदियों का महत्व, नदियों के किनारे बसने वाले गांव अपने आप में प्राकृतिक छटां का एक विशेष गुणगान कर रही है।कल का शाहाबाद आज चार जिलों में बंट चुका है। फिर भी इसकी माटी के खुशबू में भोजपुरी कहावत ,लोक परंपरा की गीत गूंजती रहती है। कुछ लोक परंपरा के गीत विलुप्त भी हो रहे हैं। जिसे आपकी रचना में इंगित कर उसके याद को तरोताजा कर देती है। ब्रिटिश काल में बने घरों की बनावट झोपड़ीनुमा ,खपरैल और गांव की पगडंडियों का चित्रण बहुत ही अनोखे तरीके से किया गया है। आशा है आपके इस किताब को पढ़कर लोगों में हर तरह का रोमांच जरूर आएगा। आपकी किताब के माध्यम से यह जानकारी मिली कि बक्सर के गंगा नदी में मिलने वाली ठोरा नदी का उद्गम स्थल रोहतास जिला का नोनहर गांव का कुआं है। आज भले ही इस कुएं का अस्तित्व खत्म हो गया है। फिर भी इस गांव से महज दो मिल उत्तर नाले के रूप से निकल रही है।ठोरा कई नदियों को साथ लेकर बड़े आकार में बक्सर गंगा में समाहित हो जाती है।

           इस किताब के एक भाग में "ग्रामीण इतिहास की समझ" आलेख से गांव के इतिहास एवं गांव में रहने वाले लोगों की अदभुत जानकारी है।जो आज भी लोककथाओं एवं कहावतों के माध्यम से दूर-दूर तक प्रचलित है। आज भी कुछ कहावतों के अनुसार यह बात सच साबित होती है।वास्तव में गांव का एक अपना बड़ा इतिहास है।हर गांव में आज भी प्राचीन मंदिरों के पास बड़े-बड़े टीले अवशेष के रूप में पड़े हुए हैं। जिसे पुरातत्व विभाग कभी खोजने की कोशिश नहीं करता है।फिर भी ग्रामीण इसे जीवंत देवता मानकर पूजते हैं जो आज भी यह भारतीय प्राचीन इतिहास की झलक को दर्शाता है।आज भी कहीं-कहीं मंदिरों के पास मृदभांड के अवशेष, बर्तनों के टुकड़े, पुराने काल के खंडित शिलालेख, मौर्य राजा अशोक के लाट के खंड आज भी दिलचस्पी के विषय बने हुए हैं।

                               _  पंकज कुमार कमल

                   पत्रकार,प्रभात खबर, बक्सर (राजपुर)

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साथी शिवकुमार यादव, सुरेश कांटक, जितेंद्र कुमार एवं सुधीर सुमन  के साथ.....

दैनिक जागरण,बक्सर,17.10.2023...☝️


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https://sonemattee.com/book-review-shahabad-as-seen-by-travelers/








साहित्य और इतिहास का संगम है ‘यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद’  

-डॉ. राणा अवधूत

    लक्ष्मीकांत मुकुल की नई किताब "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" ग्रामीण परिवेश में रची-बुनी गई ग्रामीण इतिहास पर आधारित एक प्रमाणिक पुस्तक है। हिन्दी और भोजपुरी भाषा-साहित्य के लिए समर्पित भाव से सृजनकार लक्ष्मीकांत मुकुल इस किताब के जरिये एक मंजे हुए इतिहासकार के रूप में नजर आते हैं। वैसे किताब का टाइटल "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" अपने आप में इतना आकर्षक है, कि साहित्य के प्रेमी इसे पढ़ने से नहीं चूकेंगे। सच कहे तो प्रथम दृष्टया ही यह किताब पाठकों को इतिहास के झरोखा से गुजारते हुए साहित्य के रस में भी भिंगोने में सफल दिखता है। धर्म का इतिहास से जुड़ाव को प्रमाणित करते हुए लेखक दिनारा के प्रसिद्ध देवीस्थल भलुनी गांव व धाम के लोक इतिहास और देवी मंदिर के कई मिथकीय संदर्भों से परिचित कराते हैं। भलुनी धाम की महत्ता को यह किताब आधारभूत तथ्य दे रही है।

    रोहतास जिला के दिनारा निवासी लक्ष्मीकांत मुकुल पेशेवर रूप से खेती और किसानी का काम करते हुए साहित्यिक रचनाधर्मिता में गतिशील बने रहते हैं। यह पुस्तक एक ओर साहित्यिक पुट के साथ इतिहास की जानकारी देती है, वहीं दूसरी ओर शिक्षार्थियों और शोधार्थियों के लिए ज्ञानवर्द्धक किताब के रूप में सामने आती है। इस पुस्तक में रोहतास जिला के एक प्राचीन प्रखंड दिनारा के इतिहास को रेखांकित करते हुए औपनिवेशिक काल में यहां की प्रतिरोधी चेतना को विस्तार से जानकारी है। किताब को पढ़ने से रोहतास जिला और विशेष रूप से दिनारा प्रखंड और आसपास के इलाकों में पुराना शाहाबाद के विभिन्न गांवों की भौगोलिक-सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक और धार्मिक गतिविधियों और तत्कालीन रहबासियों के रूझानों को जानने-समझने में मदद मिलती है। इसमें गांवों की सभ्यता-संस्कृति और परंपरा, रीति- रिवाजों को भी पढ़ने-जानने वालों के लिए काफी कुछ है। दरअसल यह किताब पुराना शाहाबाद के ग्रामीण समाज और इतिहास को समझने के लिए बेहतरीन किताब है। आगे यह संदर्भ पुस्तक के रूप में सहायक सिद्ध होगी।

   लक्ष्मीकांत मुकुल एक ग्रामीण-कस्बाई इलाके में रहने वाले गंभीर साहित्यकार समर्पित भाषा-सेवी अध्येता हैं। वैसे तो यह मूलतः हिन्दी और भोजपुरी साहित्य के आदमी हैं। लेकिन इतिहास लेखन में इनकी गहरी रूचि रही है। साहित्य और इतिहास का संबंध मानव के जीवन और समाज से जुड़ा हुआ है। मानव जीवन है तो साहित्य है और समाज है तो उसका इतिहास भी कुछ ना कुछ रहा है। समय के साथ साहित्य का स्वरूप बदलता है। इसी तरह समाज का इतिहास भी बदलता है। मुकुल जी ने अपनी किताब को शोधपरक दृष्टि से तैयार किया है। तभी इसमें इतिहासकार की दृष्टि से लेखक ने अपनी यायावरी प्रवृत्ति के मुताबिक किसी तथ्य पर देख-सुनकर नहीं, बल्कि यथासंभव उनका भौतिक सत्यापन और विश्लेषण करने के बाद ही लिखते हैं। ग्रामीण इतिहास पर अध्ययन करने वाले शोधार्थियों के लिए पुस्तक मागदर्शन का काम करेगी।

    इस पुस्तक को छोटे- बड़े कुल पांच अध्यायों में बांटकर लिखा गया है, जो तारतम्यता के साथ अपने पाठकों को बांधकर रखने में सक्षम दिखती है। आलेखों में सहज-सरल भाषा और शब्दावली का प्रयोग हुआ है, इससे ऐतिहासिक बोध रखते हुए भी किताब कहीं से बोझिल नहीं लगती है। साहित्य से लबरेज फैंटेंसी उपन्यास की तरह पाठकों को अंत तक पढ़ने के लिए विवश करती हैं। पहले आलेख में "औपनिवेशिक काल में दिनारा क्षेत्र और उसकी प्रतिरोधी चेतना" में दिनारा के शौर्यपूर्ण गौरवशाली इतिहास को विस्तार से सामने रखने में लेखक सफल रहे हैं। जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में बसा दिनारा का अतीत गौरवगाथाओं से परिपूर्ण रहा है। इसका जिक्र आईने अकबरी से लेकर टोडरमल के भू- राज व्यवस्था में भी शामिल था। ईस्ट इंडिया कंपनी की विश्वप्रसिद्ध खोज-यात्रा में भी दिनारा की चर्चा है। अंग्रेज सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन के नेतृत्व में हुई यह यात्रा 1812- 13 में पूरी हुई थी। उस समय करंज थाने की स्थापना हो गई थी। करंज थाना के क्षेत्राधिकार में दिनारा एवं दनवार परगनों के सभी क्षेत्र शामिल थे।

  यात्रा विवरण में औपनिवेशिक काल के दिनारा क्षेत्र के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उस दौर में बुकानन ने अपनी यात्रा-क्रम में सूर्यपुरा, करंज, कोआथ, बहुआरा, बड़हरी, दनवार, धरकंधा, शिवगंज, दिनारा, कोचस, दावथ, भलुनी, आदि गांवों का जिक्र किया हैं। घने जंगलों में स्थित भलुनी देवी मंदिर को उसने एक अति महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना है। दिनारा क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में भलुनी धाम मंदिर, धरकंधा का दरिया मठ, खास का चंदन-शहीद, देवढ़ी का शिवमंदिर, सिमरी का महावीरी झंडा, कड़सर का सोखा धाम और ठोरा नदी के संबंधित मिथकीय संदर्भों से अनेक दंतकथाएं और कहानियां लोककथाओं से उद्धृत होती हैं। बुकानन के सूर्यपुरा से भलुनी धाम, कोआथ से करंज, कोचस और कोनडिहरा से बहुआरा की यात्रा, दिनारा से करंज और कोचस-सूर्यपुरा और नटवार की यात्राओं का आंखों-देखी उसकी डायरी से मिलती है। इसके आधार पर हम उन स्थलों की पूर्व की स्थिति से वर्तमान हाल की तुलना कर आज के युग में विकास के लिए मॉडल या मानकों का मूल्यांकन कर सकते हैं, इससे विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

    पुस्तक के दूसरे लेख "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" में इस भू-खंड में प्रवास किये लोगों की यात्राओं को फोकस किया गया है। यात्रियों के यात्रा-विवरण के विषयवस्तु वहां के निवासियों की केवल गतिविधियां ही नहीं होती, बल्कि धार्मिक क्रियाकलाप, सामाजिक गतिविधि, आर्थिक लेनदेन की प्रक्रिया, स्थापत्य के तत्व और स्मारक भी होते हैं। यदि इस नजरिये से देखेंगे तो दिनारा-रोहतास में यात्रा की शुरूआत चीनी यात्री ह्वेनसांग सबसे पहले आया। मुगल सल्तनत के संस्थापक बाबर अपनी ^बाबरनामा’ में शाहाबाद के उत्तरी भाग में अपनी छावनी डालने और आरा से गुजरने का जिक्र है। ईरानी यात्री अब्दुल लतीफ आगरा स्थित राजमहल की यात्रा के वृत्तांत के दौरान चौसा और सासाराम से गुजरने के दौरान इस इलाके की चर्चा की है। यूरोपीय यात्री जीम वापरिस के पटना यात्रा के दौरान शाहाबाद के सासाराम और दुर्गावती से गुजरने की चर्चा है। इसी तरह अंग्रेज चित्रकार थॉमस डेनियल और विलियम्स डेनियल बंधुओं द्वारा शाहाबाद क्षेत्र के कई ऐतिहासिक-धार्मिक स्थलों के मनमोहक चित्र बनाये गये हैं। इसमें सासाराम के शेरशाह रौजा का तालाब, नवरतन किला, शहर से सटे स्थित धुआंकुंड व मांझरकुंड, रोहतासगढ़ का किला, भगवानपुर स्थित मुंडेश्वरी मंदिर का शिखर, शेरगढ़ का किला, रामगढ़ का किला और मंदिर के चित्र हैं। शाहाबाद में भ्रमण करने वाले यात्रियों में फ्रांसिस बुकानन हेमिल्टन एक बड़ा नाम है। वह एक उच्च कोटि के अन्वेषक थे।

    किताब में तीसरा लेख "शिया मुस्लिम द्वारा प्रारंभ सिमरी का महावीरी झंडा" है। इसके माध्यम से लेखक ने इस क्षेत्र में कौमी एकता की परंपरा को स्थापित करने की सफल कोशिश करते हैं। रोहतास के दावथ प्रखंड स्थित सिमरी गांव में सामाजिक-धार्मिक समरसता का एक अद्भुत नमूना देखने को मिलता है। जहां दशहरा में महावीरी झंडा उठाने की प्रथा एक शिया मुस्लिम द्वारा करीब 110 साल पहले शुरू की गई थी। जो आज तक बदस्तूर जारी है। मुस्लिम समाज द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं और धार्मिकग्रंथों के प्रति सम्मान की भावना के कई उदाहरण देखने को मिलता है, जिसमें रामभक्त हनुमान के प्रति आदर की भावना सबसे प्रबल मिलती है। हनुमान के प्रति मुस्लिमों द्वारा प्रकट किए गए सम्मान-समर्पण का व्यापक रूप से विवरण कल्याण के हनुमान अंक में मिलता है। जिमसें लखनउ के तत्कालीन अवध के नवाब मुहम्मद अली शाह की बेगम रबिया ने संतान प्राप्ति के लिए स्वप्न-दर्शन के आधार पर इस्लामबाड़ी में हनुमान मंदिर बनवाया था। दरअसल सिमरी गांव में बसा शिया मुस्लिम परिवार कोआथ के नवाब परिवार से जुड़ा रहा है। कोआथ के नवाब नुरूल हसन के परिवार और उनकी जमींदारी का विस्तार से उल्लेख बुकानन द्वारा शाहाबाद के सर्वेक्षण रिपोर्ट में मिलता है। इनके पुरखे शुजाउद्दौला की फौज में विंग कमांडर थे। कोआथ-सिमरी गांव की मशहूरी उस दौर में इन्हीं संपन्न मुस्लिम परिवारों और उनकी कोठियों के कारण थी। उनका खान-पान, रहन-सहन, चाल-चलन, व्यवहार, तत्कालीन समाज में समरसता एवं बराबरी के लिए प्रतिबद्ध दिखता है।

   इस पुस्तक के चौथा आलेख "बक्सर में गंगाः अतीत से वर्तमान तक" में गंगा नदी के विस्तार और इसके धार्मिक-सामाजिक महत्व को रेखांकित किया गया है। गंगाजल को सबसे पवित्र और निर्मल माना गया है। गंगातट पर बसे बक्सर के आध्यात्मिक-धार्मिक महत्व एवं गंगा से जुड़ाव को लेखक ने अपने अकाट्य तर्क और तथ्यों से प्रमाणित किया है। बक्सर एवं गंगातट के पुराने चित्रों को आधार बना लेखक ने लिखा है कि प्राचीन काल में बक्सर के गंगातट निर्मलता, सहजता और प्राकृतिक छवियों के प्रतिबिंब थे। यह जहाजियों के लंगर, जलमार्ग की आवाजाही के साथ धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। नावों की शोभायात्रा को देखने वाले दर्शनार्थियों की भारी भीड़ साबित करती है कि 200 साल पहले भी बक्सर में तीर्थयात्रियों की संख्या कम नहीं थी। इसके साथ लेखक ने बक्सर क्षेत्र में लगने वाले कई ऐतिहासिक-धार्मिक महत्व के मेलों के बारे में काफी जानकारी दी है। इसमें संक्रांति मेला, पंचकोशी मेला व श्रीराम विवाह मेला प्रमुख है। 

    इस किताब का पांचवा लेख "ग्रामीण इतिहास की समझ" इस पुस्तक की आत्मा है। शाहाबाद के ग्रामीण इतिहास को जानने-समझने के लिए यह संदर्भग्रंथ साबित हो सकती है। इतिहास में रूचि रखने वाले लोग, खास तौर पर ग्रामीण इतिहास में, उनके लिए यह पुस्तक बहुपयोगी है। इस किताब से एक ओर इतिहास को जानने-समझने की एक नई समझ मिली है, तो वहीं दूसरी ओर साहित्य और इतिहास के बारीक संबंधों को अध्ययन करने का मौका है। किताब के माध्यम से लेखक ने इतिहास के क्षेत्र में बिल्कुल ही नया प्रयोग किया है। उन्होंने पूरे किताब में कहीं भी जरूरी इतिहास बोध को लेखन से अलग नहीं होने दिया। बड़े ही खुबसूरती से इतिहास की नई व्याख्या करते हुए तमाम तथ्यों और संदर्भों को सहेजते हुए एक इतिहासकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। साहित्यिक मिजाज में लिखी गई किताब एक व्यवस्थ्ति इतिहास के रूप में सामने आई है। जिसमें लेखक अपने अंदर के अंतर्विरोधों के बावजूद वैसे तथ्यों को समाहित किए हैं, इससे ग्रामीण इतिहास की समझ व्यापक क्षेत्र के इतिहास की अपेक्षा केंद्रभूत होती है। यह विशालता से सूक्ष्मता की ओर की यात्रा है। इस मामले में लेखक ने अपनी इतिहास दृष्टि से बार-बार संकेत किया है।

    किताब का आखिरी आलेख "शाहाबाद गजेटियर का महत्व" अपने आप में खास है। कारण कि शाहाबाद गजेटियर से तत्कालीन शाहाबाद के गांव, कस्बों, बाजारों और छोटे-बड़े शहरों की आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के बारे में पता चलता है। दरअसल गजेटियर प्रकाशित करने की परंपरा ब्रिटीश शासनकाल में प्रशासकीय दृष्टि को ध्यान में रखकर अधिकारियों को क्षेत्र विशेष की जानकारी देने के लिए शुरू हुई थी इसमें क्षेत्र विशेष या जिले का भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक स्थलों के बारे में जानकारी के साथ ही सरकारी गतिविधियों की मोटा-मोटी जानकारी रहती थी। इससे अंग्रेज अधिकारियों को शासन की व्यवस्था को सुचारू ढ़ंग से चलाने में सहूलियत होती थी। किसी क्षेत्र विशेष के बारे में जानने-समझने के लिए गजेटियर का अध्ययन बहुत जरूरी होता है। यदि इतिहास की सूक्ष्म जानकारी लेनी है, किसी क्षेत्र में शोध करना है तो पुराने गजेटियर कितना सहायक होगा, यह लेखक ने स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया है। विदित हो कि भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला बिहार का पुराना शाहाबाद जिला आज के समय में प्रशासनिक दृष्टि से चार नए जिलों  में विभक्त हो चुका है_ भोजपुर(आरा),रोहतास (सासाराम), बक्सर व कैमूर(भभुआ)।

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि लक्ष्मीकांत मुकुल की अध्ययन शैली बहुत साफ-सुथरी और सारगर्भित है। अपने लेखन में इतिहास की गहरी समझ रखते हुए साहित्यिक शैली में अपनी किताब को प्रस्तुत किया है। यह किताब आने वाले समय में शाहाबाद के इतिहास की जानकारी रखने वाले के लिए बहुलाभकारी साबित होगी। किताब के माध्यम से उन्होंने क्षेत्रीय इतिहास लेखन के लिए एक नई लकीर खींची है। संदर्भ सामग्री के रूप में यह किताब भविष्य में शोधार्थियों के लिए बहुत काम की साबित होगी। ग्रामीण इतिहास की गहन अध्ययनशीलता लेखक के मनोयोग और गांव के इतिहास से जुड़ी उनकी यह किताब लीक से हटकर है।

संदर्भ_
 यात्रियों के नजरिए में शाहाबाद 
(ग्रामीण इतिहास)
प्रकाशक_ सृजनलोक प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ट _ 98
प्रकाशन वर्ष_2022
मूल्य_150₹


संपर्क सूत्र_           
न्यू एरिया, सासाराम, 
जिला- रोहतास, बिहार- 821115.
मो- 7903824624.
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