Saturday 16 September 2023

लक्ष्मीकांत मुकुल की कविताओं का असमिया में अनुवाद



मेरी तीन प्रेम कविताओं का काव्यानुवाद श्री विष्णु कमल डेका जी ने असमिया भाषा में किया है। विष्णु जी डिब्रूगढ़ जिला के रहने वाले हैं और नाहरकटिया उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में वरीय हिंदी शिक्षक के रूप में कार्य भी किए हैं। इन्होंने हिंदी- असमिया  साहित्य के रचनाओं का विपुल मात्रा में अंतर्नुवाद भी किया है। मजे की बात यह भी है कि इन्होंने एक प्रवासी भोजपुरी श्रमिक की मित्रता  से प्रभावित होकर भोजपुरी भाषा सीखी और भोजपुरी में इन्होंने लेखन कार्य भी किया। "स्नेह के बंधन" इनके भोजपुरी कविता_ कहानी संग्रह का नाम है।
अभी हाल में ही इनकी आत्मकथा भी प्रकाशित हुई है । डेका जी के प्रति विनम्र आभार प्रकट करते हुए,
मित्रों की अवलोकन के लिए इनके अनुवाद को  यहां प्रस्तुत कर रहा हूं.....

1.
সান্নিধ্য চিৰন্তন


মদাৰৰ উজ্জ্বল ফুলৰ দৰে
তুমি আহিছা জঞ্জালে আৱৰা মোৰ জীৱনলৈ
পখিলা ভোমোৰাৰ দৰে উৰি উৰি
তোমাৰ দেহ নিগৰিত সুবাস
আৰু তোমাৰ স্পৰ্শত উথলি উঠে স্পৃহাৰ কোমলতা
তোমাৰ পনীয়া চকুত দেখোঁ সৰোবৰৰ বিস্তৃতি
তোমাৰ গুণগুণিত সৰে মোৰ অন্তৰৰ মহুৱা
যেতিয়াই বয় ব'হাগী পুৱাৰ কোমল বতাহ
ডোলে জোনালী সেউজীয়া পাত ধৱল ফুলৰ সতে
বিচলিত হওঁ ক্ষন্তেকৰ বাবে হ'লেও
বর্তি থাকে যেন এই সান্নিধ্য চিৰন্তন।



 _ মূল (হিন্দী) লক্ষ্মীকান্ত ‘মুকুল’
অনুবাদ-বিষুকমল ডেকা



2.
সোণ- হালধীয়া সাজত
তোমাক দেখিছিলোঁ প্ৰথমবাৰ
যেন বসন্তৰ বা লগা ডাল ভৰা ফুল
সৰিয়হ ফুলে চানি ধৰা পথাৰ
ভৰি পৰিছে সৰোবৰ ভেটফুলেৰে
কৰবিৰ লেহুকা ডালত ডুলি থকা
তোমাক দেখি হালধীয়াখিনি
প্ৰেমৰ কবিতা (হিন্দী)
দুচকুৰ মাজেৰে সোমাই গ'ল আত্মাৰ গভীৰলৈ
সময়ৰ কাঠগড়াত নৈৰ পাৰৰ
জড়বৃক্ষ হৈ পৰিছোঁ মই
তুমি কুন্দুৰী লতাৰ দৰে বগাইছা আগলি পাতলৈ
বতাহৰ গতিৰে গতিমান তোমাৰ অংগ-প্রত্যংগ
তোমাৰ স্পৰ্শত কম্পিত
মোৰ নিষ্কলুষ উদ্বেগ।

 _ লক্ষ্মীকান্ত ‘মুকুল’
অনুবাদ – বিষ্ণুকমল ডেকা


3.
মৌচুমীৰ প্ৰথমজাক বৰষুণত
তিতিছে গাঁও
তিতিছে চহোৱা নচহোৱা পথাৰ
তিতিছে কাষেৰে বৈ যোৱা নদী
তিতিছে জানৰ কাষৰ আঁহতজোপা
বতাহৰ চেৱত হালি-জালি
তিতিছে আলিদাঁতিৰ জোপোহা বননি
তিতিছে চৰি থকা ছাগলীবোৰ
তিতিছে মোৰ পঁজা
চোতালত থিয় হৈ তুমি
তিতিছা বতাহৰ স’তে
এচলীয়াকৈ দিয়া বৰষুণৰ টোপালত
পথাৰৰ পৰা তিতি তিতি
উভতি আহি আছোঁ মই তোমাৰ কাষলৈ
লগ পোৱাৰ সেই হাবিয়াস লৈ
প্ৰথমজাক বৰষুণ
যেনেকৈ আকাশৰ পৰা সৰি অহা টোপালবোৰ
ব্যাকুল হৈ উঠে পাবলৈ
শুকান মাটিৰ কেঁচা গোন্ধ।


মূল (হিন্দী) লক্ষ্মীকান্ত ‘মুকুল’
অনুবাদক - বিষুকমল ডেকা


 मेरी मूल हिंदी कविताएं_
1.

मदार के उजले फूलों की तरह
तुम आई हो कूड़ेदान भरे मेरे इस जीवन में
तितलियों, भौरों जैसा उमड़ता
सूंघता रहता हूं तुम्हारी त्वचा से उठती गंध
तुम्हारे स्पर्श से उभरती चाहतों की कोमलता
तुम्हारी पनीली आंखों में छाया पोखरे का फैलाव
तुम्हारी आवाज की गूंज में चूते हैं मेरे अंदर के महुए
जब भी बहती है अप्रैल की सुबह में धीमी हवा
डुलती है चांदनी की हरी  पत्तियां अपने धवल फूलों के साथ 
मचलता हूं घड़ी दो घड़ी के लिए भी 
बनी रहे हमारी सन्नीकटता



2.

शगुन की पीली साड़ी में लिपटी 
तुम देखी थी पहली बार 
जैसे बसंत बहार की टहनियों में भर गए हों फूल
सरसों के फूलों से छा गए हो खेत
भर गई हो बगिया लिली- पुष्पों से
कनेर की लचकती डालियां डुल रही हों धीमी
तुम्हें देखकर पीला रंग उतरता गया 
आंखों के सहारे मेरी आत्मा के गहवर में 
समय के इस मोड़ पर नदी किनारे खड़ा एक जड़ वृक्ष हूं मैं 
तुम कुदरुन की लताओं- सी चढ़ गई हो पुलुई पात पर
हवा के झोंकों से गतिमान है तुम्हारे अंग - प्रत्यंग
तुम्हारे स्पर्श से थिरकता है मेरा निष्कलुश उदवेग

3.


मानसून की पहली बूंदों में
भीग रहा है गांव
 भीग रहे हैं जुते -अधजुते खेत
 भीग रही है समीप की बहती नदी 
भीग रहा है नहर किनारे खड़ा पीपल वृक्ष
 हवा के झोंके से हिलती 
भीग रही हैं बेहया ,हंइस की पत्तियां
भीग रही हैं चरती हुई बकरियां
 भीग रहा है खंडहरों से घिरा मेरा घर

ओसारे में खड़ी हुई तुम
भीग रही हो हवा के साथ
तिरछी आती बारिश - बूंदों से

खेतों से भीगा - भीगा
लौट रहा हूं तुम्हारे पास 
मिलने की उसी ललक में
जैसे आकाश से टपकती बूंदें 
बेचैन होती है छूने को 
सूखी मिट्टी से उठती 
धरती की भीनी गंध ।







 नाहरकटिया, असम के "प्रज्ञा बूढ़ी दिहिंग" स्मारिका_2023 में प्रकाशित...👇

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