Thursday 7 November 2019

लक्ष्मीकांत मुकुल का कृष्ण- काव्य

लक्ष्मीकांत मुकुल की चार कविताएं






      1.

        # बिलख रही है जमुना की नीली जलधाराएं #



झार - झार रोती है जमुना की जलधाराएं  
भौतिक विकास के कालिया नाग की असंख्य दंशों से ग्रसित
कब से सूख चुका है उद्गम से आता
 स्वच्छ निर्मल जल का शीतल प्रवाह
 नए युग के कौरवों ने विसर्जित कर डाले हैं उसके बहाव में मल- मूत्र की गंदगियां 
मछलियां तरस रही हैं 
कछुए, घोंघे विफर रहे हैं उसकी तलहटियों में
कगार पर की कदंब - गांछ
पत्रहीन होकर खड़ी है एकाकी खड़ी है एकाकी जिसकी डाल पर बंदर की तरह उछल कूद करते थे कान्हा
उदास हैं गायें यमुना किनारे नहीं बचे बचे उनके चारागाह
ग्वाल -बाल -सखियां राह निहारती है कृष्ण की
 मथुरा जाने वाले राजमार्ग पर  
किसी पथिक से उसे नहीं मिलती है सूचनाएं
 उड़ती खबरें आती हैं कानों में फुसफुसाती हुईं 
वह तो चला गया है सुदूर द्वारिका 
नहीं आते उसके संदेश ,न खत ,न खबरें

जरासंधों, पोंड्रुकओंं की उत्पात बढ़ती जा रही है ब्रज भूमि में 
यमुना में नहाने गई कुबरियों, राधाओं के साथ हो रहा है दुष्कर्म 
वर्षों से घर में सहम कर बैठी है ललिता, विशाखा कभी नहीं जाती हैं समीप वाले सब्जी के खेत में नरकासुर के भय से

सब दुर्गतिओं को देखती - झेलती यमुना
तरसती हुई बंसी की धुन सुनने को बेताब
 सूखते जा रहे हैं उसके अश्रुपूरित नेत्र
 धीमी होती जा रही उसके लिए जल में



    2.


       # बेवफाई को याद करती उदास है राधा #


अंधियारी रात में छत पर सोई राधा 
चांद -तारों को निरखती याद करती है बंसी वाले को जिस से मिलने वह चली आती नंगे पांव वृंदावन की बाग में 
उसका स्नेहिल स्पर्श ,छुवन,चुम्बन सब याद है उसे
मिलते ही मन में खिल जाते थे पोखरा किनारे के लाल पलाश 
यमुना तीर पर खड़ी जामुन की फलियां
 नंद गांव के रास्ते में छाए भटकैया के फूल

याद करती हुई उदास हो जाती है राधा 
शहर जाते ही कैसे बेवफा हो गया कृष्ण 
उलझता गया नित नई सुंदरियों की इंद्रजाल में
 मथुरा की गलियों में उसे मिली जादूगरनी कुब्जा
 जो फांस ली उसे कपटपूर्ण प्रेम - फांस में 
कहीं कोठे वालियों ,दरबार की नर्तकियों के
वृत में शामिल ना वह हो जाए कहीं 
भंवर काटते हुए बिताने लगे अपनी जिंदगी


अचंभित है राधा देखती हुई बरसाना की ऊंची पहाड़ियों को 
चक्रवात की जोड़ें उड़ते हुए चले जा रहे थे उसकी ओर 
सोचती है पहले प्यार, अपने पहले प्रेमी के विषय में रुकमणी आदि पटरानियों के बस में कहां है कृष्ण का प्यार पाना
 सच्चा प्यार तो वह ही पायी है 
जब वह अमरूद की लचकती डाल की तरह थी नवयौवना में  
जिसकी अभी साक्षी है जमुना की लहरें
 गोकुल की ओर से दिखता वंशीवट
हवा में सुरसुरा ती बांसुरी की मादक धुन।



    3.



     # प्रतिरोध में खड़ा होता है कृष्ण #


अन्याय की विष वेलियां पसरी हैं
नंदगांव, वृंदावन, गोकुल में नहीं ,पूरी दुनिया में 
कंशों ने हड़प लिए हैं आम आदमी की निजता को
उसके अधिकार, न्याय के लिए उसकी तड़प 
जल -जंगल -जमीन सभी बंधक बनाए जा रहे हैं मथुरा के धन सेठों की तिजोरियों में

पुतनाएं छीन रही हैं बच्चों की पोषणता
तृणावर्त ओं ने फैला रहा हैं क्रूरता की अंधड़
वत्सासुरों ने गांव -गांव ,शहर -शहर में लगा दिया है धर्म -जाति के भेद की लपटें
बकासुरों के नए अवतारों ने अपनी चोंचों में दबोच लिए हैं लोगों की खुशहाली
आधासुरों के अजगर मुखों में अनायास ही बढ़ते जा रही हैं लोग बाग 
वैश्विक पूंजी के बाजार के दलदल में


जब भी गहराती है इस समय की बर्बरता 
प्रतिरोध में सजग खड़ा होता है कोई कृष्ण!




     4.


       # रासलीला के पात्र बच्चें #



मथुरा- वृंदावन के गांवों से आए 
रासलीला में अभिनय करते बच्चे 
आम फहम की तरह नहीं लगते कहीं से 
दर्शक उन्हें विस्तारित नेत्रों से देखते हैं मंत्रमुग्ध होते हुए 
चेहरे पर मुस्कान फैलाएं अलौकिक का भाव बिखेरते दिखते हैं वे अक्सर

पता नहीं वह कभी पाठशाला गए होंगे या नहीं 
क्या भाषा विन्यास को समझा होगा 
बीज गणितीय सूत्रों को हल किया होगा कि नहीं तकनीक में रोज आ रहे बदलावों को बुझा होगा या नहीं 
 ग्वाल -बालों का रूप धरे चरवाहे भी वह नहीं लगते जो दौड़ते हैं पगहा थामे आर - पगार


हिंदी कूदने की उम्र में ये बच्चे 
मां के आंचल पिता के साये से सैकड़ों मील दूर  
हंसते- खेलते कैसे मिल कर लेते हैं नृत्य लीला 
कृष्ण - बलराम का बाना बनाए बच्चों को
 क्या घर के बिछोह का दर्द नहीं सताता होगा ?



घर के पिछवाड़े में फला अमरूद
आंगन में लदराया तुत
स्कूल के रास्ते के मकोह
सिवान के रास्ते पर खड़ा बेर
दरवाजे पर बंधी मिमियाती बकरियां
खूंटे पर चिकरती बाछी
क्या खींचते नहीं होंगे उनके दिलों के तार ?


नियम -कानून की पोथियों की धज्जियां उड़ाते 
कौन खींच लाया है इन अबोध बालकों को
पुरायुगीन
 नायक पात्रों का अभिनय करने के लिए 
राधा -कृष्ण बने बच्चों को दिला सकते हो तुम कभी भी न्याय का दिलासा
 जिनके आगे लगकर माथा टेक रही है 
दर्शकों की उल्लसित भीड़....!!

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